Friday, January 5, 2024

तुम उठो सिया सिंगार करो अब धनुष राम ने तोडा है - (भजन)

तुम उठो सिया सिंगार करो अब धनुष राम ने तोडा है | (२)
तोडा है भाई तोडा है, सीता से नाता जोड़ा है | (२)

तुम उठो सिया सिंगार करो अब धनुष राम ने तोडा है | (२)

माथ सिया के टिका सोहे, नथिया की छबि न्यारी है | (२)
न्यारी है भाई न्यारी है, रघुवर को जानकी प्यारी है | (२)

तुम उठो सिया सिंगार करो अब धनुष राम ने तोडा है | (२)

सुन हरखित सब सखी सहेली, धनुष राम ने तोडा है | (२)
शिव धनुष राम ने तोडा है, सीता से नाता जोड़ा है | (२)

तुम उठो सिया सिंगार करो अब धनुष राम ने तोडा है |
तोडा है भाई तोडा है, सीता से नाता जोड़ा है | (२)

तुम उठो सिया सिंगार करो अब धनुष राम ने तोडा है | (४)

Wednesday, January 3, 2024

राम नाम के साबुन से जो – भजन के पद

         राम नाम के साबुन से, जो मन का मेल छुड़ाएगा | 

निर्मल मन के दर्पण में, वह राम का दर्शन पाएगा || (२)


नर शरीर अनमोल रे प्राणी, प्रभु कृपा से पाया है | 

झूठे जग प्रपंच में पड़कर क्यों प्रभु को विसराया है || (२)


समय हाथ से निकल गया तो....... (२)

सिर धुन धुन पछताएगा | 


निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा |


राम नाम के साबुन से जो मन का मेल छुड़ाएगा | 

निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा || 


झूठ कपट निंदा को त्यागो, हर प्राणी से प्यार करो | 

घर पर आए अतिथि कोई तो यथा शक्ति सत्कार करो || (२)


क्यों ? 


पता नहीं किस रूप में आकर.......(२)

नारायण मिल जाएगा | 


निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा |

 

राम नाम के साबुन से जो मन का मेल छुड़ाएगा | 

निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा || 


साधन तेरा कच्चा है, जब तक प्रभु पर विश्वास नहीं | 

मंजिल कर पाना है, क्या जब दीपक में परकाश नहीं || (२) 


निश्चय है तो भवसागर से.......(२)

बेडा पार हो जाएगा | 


निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा |

 

राम नाम के साबुन से जो मन का मेल छुड़ाएगा | 

निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा || 


दौलत का अभिमान है झूठा, यह तो आनी जानी है | 

राजा रंक अनेकों हुए, कितनों की सुनी कहानी है || (२) 


राम नाम प्रिय महा मन्त्र ही.......(२) 

साथ तुम्हारे जाएगा | 


निर्मल मन के दर्पण में वह, राम का दर्शन पाएगा | 


राम नाम के साबुन से जो.......(२)  

मन का मेल छुड़ाएगा | 


निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा | 


राम नाम के साबुन से जो मन का मेल छुड़ाएगा | 

निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा ||


Friday, March 3, 2023

नाम रामायण - अर्थ सहित हिंदी में



नामरामायण
॥ बालकाण्डः ॥

शुद्धब्रह्मपरात्पर राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो शुद्ध ब्रह्म स्वरुप और श्रेष्ठों से भी श्रेष्ठ है | 

कालात्मकपरमेश्वर राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ सब के काल(गति) के स्वामी है और परमेश्वर कहे जाते है | 

शेषतल्पसुखनिद्रित राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो शेषनाग की शैया पर सुख से सोये हुए है | 

ब्रह्माद्यमरप्रार्थित राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्हे ब्रह्मा सहित अन्य देवताओं ने अवतार लेने के लिए प्रार्थना की थी | 

चण्डकिरणकुलमण्डन राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनसे सूर्यवंश शोभायमान है | 

श्रीमद्दशरथनन्दन राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो दशरथ के नंदन (पुत्र) है | 

कौसल्यासुखवर्धन राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो कौशल्या के सुख की वृद्धि करते है | 

विश्वामित्रप्रियधन राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ ऋषि विश्वामित्र का सबसे प्रिय धन/सम्पदा है | 

घोरताटकाघातक राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने घोर राक्षसी ताटका का वध किया था | 

मारीचादिनिपातक राम । १०
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो मारीच आदि राक्षसों के पतन का कारण थे | 

कौशिकमखसंरक्षक राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने ऋषि विश्वामित्र के यज्ञका रक्षण किया था | 

श्रीमदहल्योद्धारक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने अहल्या का उद्धार किया था | 

गौतममुनिसम्पूजित राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनकी गौतम ऋषि पूजा करते है | 

सुरमुनिवरगणसंस्तुत राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनकी देवों और ऋषियां महिमा गाते है | 

नाविकधावितमृदुपद राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनके मृदु चरणों/पदों को नाविकने पखारा (धावित/धोया) था | 

मिथिलापुरजनमोहक राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जिन्होंने मिथिला के पुरजनों का मन मोह लिया था | 

विदेहमानसरञ्जक राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने विदेह (राजा जनक) का मान बढ़ाया था | 

त्र्यम्बककार्मुकभञ्जक राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने त्रि-नेत्र धारी शिव का धनुष तोडा था | 

सीतार्पितवरमालिक राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने सीता द्वारा अर्पित वरमाला पहनी थी | 

कृतवैवाहिककौतुक राम । २० 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनके विवाह के लिए उत्सव सा आयोजन हुआ था | 

भार्गवदर्पविनाशक राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने परशुराम के अहंकार (दर्प) का विनाश किया था | 

श्रीमदयोध्यापालक राम ॥ 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो अयोध्या के पालनहार थे | 

राम राम जय राजा राम । 
राम राम जय सीता राम ॥

॥ अयोध्याकाण्डः ॥

अगणितगुणगणभूषित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो अगणित गुणों से सुशोभित है | 

अवनीतनयाकामित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनको पाने को धरती(अवनि) की पुत्री(सीताजी) इच्छुक थी |

राकाचन्द्रसमानन राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनका मुख पूर्ण चंद्र के समान है | 

पितृवाक्याश्रितकानन राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जो अपने पिता के शब्दों को सुनकर वन की आश्रय में चले गए |

प्रियगुहविनिवेदितपद राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनके चरणोमें गुह ने अपने आप को प्रिय सेवक के रूप में समर्पित किया | 

तत्क्षालितनिजमृदुपद राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनके मृदु पदों को गुह ने पखारा था | 

भरद्वाजमुखानन्दक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो ऋषि भरद्वाज के मुख पर आनंद का कारण थे | 

चित्रकूटाद्रिनिकेतन राम । ३०
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने चित्रकूट पर्वत पर वास किया था |  

दशरथसन्ततचिन्तित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने वनवास के दौरान सतत पिता दशरथ की चिंता की थी | 

कैकेयीतनयार्थित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्हे कैकेयी के पुत्र ने वापस लौटने के लिए प्रार्थना की थी | 

विरचितनिजपितृकर्मक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने अपने पिता के अंतिम संस्कार विधि की थी | 

भरतार्पितनिजपादुक राम ॥
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने अपनी पादुका भारत को अर्पण की थी | 

राम राम जय राजा राम ।
राम राम जय सीता राम ॥

॥ अरण्यकाण्डः ॥

दण्डकावनजनपावन राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जिन्होंने असुरों का संहार कर के दण्डक वन को पवित्र किया था | 

दुष्टविराधविनाशन राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने दुष्ट विराध का विनाश किया था | 

शरभङ्गसुतीक्ष्णार्चित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनको ऋषि शरभंगा और सुतीक्ष्ण पूजते थे | 

अगस्त्यानुग्रहवर्दित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्हे अगस्त्य ऋषि का अनुग्रह (आशीर्वाद) प्राप्त  था | 

गृध्राधिपसंसेवित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जिनकी गिद्धों के राजा (जटायु) सेवा करते थे | 

पञ्चवटीतटसुस्थित राम । ४०
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो नदी तट पर पंचवटी में निवास करते थे | 

शूर्पणखार्त्तिविधायक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने शूर्पणखा के बद इरादों के चलते उस पर वार का आदेश दिया था | 

खरदूषणमुखसूदक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने खर और दूषण के मुखों को नष्ट किया था | 

सीताप्रियहरिणानुग राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो सीता को प्रिय हरण के पीछे गए थे | 

मारीचार्तिकृताशुग राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने अपने बाण से मारीच को उसके कृत्यों के लिए पीड़ा दी थी | 

विनष्टसीतान्वेषक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने खोई सीता को ढूंढने के लिए चाव(जोर देकर) से प्रयास किया था | 

गृध्राधिपगतिदायक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने गिद्धों के राजा (जटायु) को मोक्ष दिया था | 

शबरीदत्तफलाशन राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने शबरी द्वारा अर्पण फल खाए थे | 

कबन्धबाहुच्छेदन राम ॥
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिहोने कबंध की भुजाओं को काट दिया था | 

राम राम जय राजा राम ।
राम राम जय सीता राम ॥

॥ किष्किन्धाकाण्डः ॥

हनुमत्सेवितनिजपद राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनके चरणों में हनुमंत सदैव सेवा के लिए तत्पर रहते है | 

नतसुग्रीवाभीष्टद राम । ५०
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने सुग्रीव के शरण में आने पर उसकी इच्छा पूरी की थी | 

गर्वितवालिसंहारक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ वाली के गर्व का संहार किया था | 

वानरदूतप्रेषक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने वानर को दूत बनाकर भेजा था | 

हितकरलक्ष्मणसंयुत राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनका हित चाहने वाले साथ लक्ष्मण हमेंशा उनके साथ रहते थे | 

राम राम जय राजा राम ।
राम राम जय सीता राम ।

॥ सुन्दरकाण्डः ॥

कपिवरसन्ततसंस्मृत राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनका वानर श्रेष्ठ हनुमान सतत स्मरण करते है | 

तद्गतिविघ्नध्वंसक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने हनुमान के मार्ग में आनेवाले विघ्नों को ध्वंस किया था | 

सीताप्राणाधारक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो सीता के (बंधक समय में) प्राण का आधार थे | 

दुष्टदशाननदूषित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने दुष्ट दशानन (रावण) की भर्त्सना(निंदा) की थी | 

शिष्टहनूमद्भूषित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने बुद्धिमान और प्रसिद्ध हनुमान की प्रशंसा की थी | 

सीतावेदितकाकावन राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने वन में घटित काकासुर का वृतांत जो सीताजी ने हनुमान जी बताया था वो हनुमान जी से सुना | 

कृतचूडामणिदर्शन राम । ६०
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने हनुमान द्वारा लाई गई सीताजी की चूड़ामणि का दर्शन किया | 

कपिवरवचनाश्वासित राम ॥
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनको वानर श्रेष्ठ हनुमान जी के वचनों से आश्वासन (सीताजी के कुशल होने का ) मिला | 

राम राम जय राजा राम ।
राम राम जय सीता राम ॥

॥ युद्धकाण्डः ॥

रावणनिधनप्रस्थित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने रावण के अंत(निधन) के लिए प्रस्थान किया | 

वानरसैन्यसमावृत राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनकी सेनामें वानरभी सम्मिलित थे | 

शोषितशरदीशार्थित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने सागर के देव को मार्ग देने की बिनती की थी अन्यथा सूखा देने का बात कही थी | 

विभीष्णाभयदायक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने विभीषण को अपनी शरण देकर अभय होने का आशीर्वाद दिया था | 

पर्वतसेतुनिबन्धक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने पर्वत की शिलाओं से सागर पर सेतु बनवाया था | 

कुम्भकर्णशिरश्छेदक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने युद्ध में कुम्भकर्ण का शिरच्छेद किया था | 

राक्षससङ्घविमर्धक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने राक्षसों की सेनाको कुचल दिया था | 

अहिमहिरावणचारण राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने महिरावण को पाताल में धंसवा (हनुमान जी द्वारा) दिया था | 

संहृतदशमुखरावण राम । ७०
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने दशमुखी रावण का संहार किया था | 

विधिभवमुखसुरसंस्तुत राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनकी ब्रह्मा, शिव और अन्य देवता प्रशंसा करते थे | 

खःस्थितदशरथवीक्षित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनके अलौकिक कार्यों को दशरथने स्वर्ग से देखा था | 

सीतादर्शनमोदित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो सीताजी के दर्शन से (युद्ध के पश्चात ) प्रसन्न हुए थे |  

अभिषिक्तविभीषणनत राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनका विभीषणने ( अपने राज्याभिषेक पश्चात ) भक्तिभाव से अभिवादन किया था | 

पुष्पकयानारोहण राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने (अयोध्यागमन के लिए ) पुष्पक विमान में आरोहण किया था | 

भरद्वाजादिनिषेवण राम । 
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने भरद्वाज एवं अन्य ऋषियों से भेंट की थी | 

भरतप्राणप्रियकर राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने (वापस आकर) अनुज भरत के जीवन की खुशियां बढ़ाई थी | 

साकेतपुरीभूषण राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने (वापस आकर) अयोध्या की शोभा बढ़ाई थी | 

सकलस्वीयसमानत राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो सभी के साथ अपनेपन और समानभाव से व्यवहार करते थे | 

रत्नलसत्पीठास्थित राम । ८०
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो रत्नजड़ित सिंहासन पर आरूढ़ थे | 

पट्टाभिषेकालंकृत राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जो अपने राज्यभिषेक के समय मुकुट से अलंकृत थे | 

पार्थिवकुलसम्मानित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने राज्याभिषेक में उपस्थित अन्य राजाओं को उचित सन्मान दिया था | 

विभीषणार्पितरङ्गक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जिन्होंने राज्याभिषेक के समय श्री रंगनाथ की मूर्ति विभीषण को भेंट दी थी | 

कीशकुलानुग्रहकर राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जिहोने अपने सूर्य वंश पर अपना अनुग्रह बनाए रखा | 

सकलजीवसंरक्षक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जो सभी जीवों के संरक्षक है | 

समस्तलोकोद्धारक राम ॥
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जो सभी लोकों (पृथ्वी लोक, पाताल लोक, स्वर्ग लोक, गौ लोक आदि) को धारण (एवं पालन) करते है | 

राम राम जय राजा राम ।
राम राम जय सीता राम ॥

॥ उत्तरकाण्डः ॥

आगत मुनिगण संस्तुत राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनकी भेंट के लिए आनेवाले सभी मुनिगण प्रशंसा करते थे | 

विश्रुतदशकण्ठोद्भव राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिनकी गाथाए अनेक कंठो से दशों दिशाओं में लोग अनंतकाल तक सुनेंगे | 

सीतालिङ्गननिर्वृत राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो सीताजी के आलिंगन से आनंदित थे | 

नीतिसुरक्षितजनपद राम । ९०
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने अपने राज्य को धर्म से चलकर सुरक्षित  किया था | 

विपिनत्याजितजनकज राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने जनकपुत्री (सीता) का जंगल में त्याग किया था | 

कारितलवणासुरवध राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने (अनुज शत्रुघ्न द्वारा) असुर लवणासुर का वध करवाया था | 

स्वर्गतशम्बुक संस्तुत राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जिनकी स्वर्ग जा रहे शम्बूक ने प्रशंसा की थी | 

स्वतनयकुशलवनन्दित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जिन्होंने अपने पुत्रो लव और कुश को आनंदित किया था | 

अश्वमेधक्रतुदीक्षित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जिन्होंने अश्वमेध यज्ञ शुरू करवाया था | 

कालावेदितसुरपद राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जिनको स्वयं काल (यम) ने उनके दिव्य गमन के लिए सूचित किया था | 

आयोध्यकजनमुक्तित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जिन्होंने अयोध्यावासियों को मुक्ति (मोक्ष) प्रदान किया था | 

विधिमुखविभुदानन्दक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो ब्रह्मा एवं अन्य देवोंके मुखपर प्रसन्नता का कारण बने थे | 

तेजोमयनिजरूपक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो प्रस्थान से पहले अपने दिव्य तेजोमय रूप में प्रगट हुए थे | 

संसृतिबन्धविमोचक राम । १००
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो जीव को संसार के बंधनो से मुक्त करते है | 

धर्मस्थापनतत्पर राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो हमेंशा धर्म स्थापना के लिए तत्पर रहते है | 

भक्तिपरायणमुक्तिद राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जो उनकी भक्ति में समर्पित (परायण) को मुक्ति प्रदान करते है | 

सर्वचराचरपालक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो सभी चर एवं अचर जीवों के पालक है |  

सर्वभवामयवारक राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ जो अपने भक्तों को सभी सांसारिक हानियों से बचा के रखते है | 

वैकुण्ठालयसंस्थित राम ।
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ  जो (अपने प्रस्थान के पश्चात) वैकुण्ठ में विराजमान है | 

नित्यानन्दपदस्थित राम ॥
मैं उस राम की शरण में जाता हूँ (अपने प्रस्थान के पश्चात) जो अपने मूल शाश्वत परम आनंद की स्थिति में स्थापित है | 

राम राम जय राजा राम ॥ 
राम राम जय सीता राम ॥ १०८

इति श्रीलक्ष्मणाचार्यविरचितं नामरामायणं सम्पूर्णम् ।

Wednesday, July 15, 2020

श्रीजगन्नाथाष्टकम् - जगन्नाथ अष्टकम अर्थ सहित हिंदी एवं अंग्रेजी में



जय जगन्नाथ ! 
मेरी पूज्य माताजी की प्रेरणा से हाल ही में मैंने यह स्तोत्र का पाठ करना प्रारम्भ किया है और इसका अर्थ बहुत ही सुन्दर है तो मन किया की इसे अन्य भक्तों के साथ साझा किया जाए | अंत में मैंने पुरी धाम के पंडितजी के द्वारा यह स्तोत्र सुमधुर कंठ से गाया गया है उसका वीडियो लिंक भी दिया है | कुछ शब्दों को आप अन्य जगह उपलब्ध स्तोत्र में लिखे गए शब्दों से थोड़े से भिन्न पाएंगे क्योंकि मैंने वीडियो में पंडितजी के शब्दों से शब्दों को मिलाने का प्रयास किया है | और देश के भिन्न भागों में इस तरह का शब्दों का सूक्ष्म अंतर मैंने अन्य स्तोत्रों में भी देखा है | किसी भी चूक के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ | यहाँ अर्थ हिंदी के साथसाथ अंग्रेजी में भी दिया गया है क्योंकि भारत से बहार लाखों हिन्दू परिवारों में बच्चे अब अंगेजी में ही कृष्ण भक्ति करना सीख रहे है |  

स्तोत्र का इतिहास | 
जब आदि शंकराचार्य प्रथम बार पुरी धाम स्थित जगन्नाथ (श्री कृष्ण) जी के दर्शन के लिए पहुंचे, तो भगवान् को देखकर उन्होंने जगन्नाथ जी की स्तुति की ओर अष्टकम का निर्माण किया |  यह जगन्नाथ स्वामी का सबसे अधिक प्रचलित स्तोत्र है |  इसे चैतन्य महाप्रभु जी ने गाया जब वह जगन्नाथ जी के दर्शनों के लिए आये थे |  यह पावन ओर शक्तिशाली अष्टक है जिसके पाठमात्र से जगन्नाथ स्वामी प्रसन्न हो जाते है, मनुष्य की आत्मा पापो से मुक्त होकर विशुद्ध हो जाती है | इस अष्टकम के पाठ से आत्मा पवित्र होकर अंत में विष्णु लोक को प्राप्त करती है | हर वैष्णव को मुक्ति देने वाला यह स्तोत्र भगवन जगन्नाथ जी को अतिशय प्रिय है |

जगन्नाथ पुरी धाम का संक्षिप्त परिचय | 
पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है।इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है।इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। मध्य-काल से ही यह उत्सव अतीव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही यह उत्सव भारत के ढेरों वैष्णव कृष्ण मंदिरों में मनाया जाता है, एवं यात्रा निकाली जाती है। यह मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा हुआ है। यह गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के लिये खास महत्व रखता है। इस पंथ के संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु भगवान की ओर आकर्षित हुए थे और कई वर्षों तक पुरी में रहे भी थे।

कदाचित् कालिन्दी_तटविपिन_सङ्गीतकरवो 
मुदाभीरीनारी_वदनकमलास्वादमधुपः ।
रमाशम्भुब्रह्मा मरपतिगणेशार्चितपदो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥१॥

अर्थ
हे प्रभु ! आप कदाचित जब अति आनंदित होते है,तब कालिंदी तट के निकुंजों में मधुर वेणु नाद द्वारा सभी का मन अपनी ओर आकर्षित करने लगते हो, वह सब गोपबाल ओर गोपिकाये ऐसे आपकी ओर मोहित हो जाते है जैसे भंवरा कमल पुष्प के मकरंद पर मोहित रहता है, आपके चरण कमलो को जोकि लक्ष्मी जी, ब्रह्मा,शिव,गणपति ओर देवराज इंद्र द्वारा भी सेवित है ऐसे जगन्नाथ महाप्रभु मेरे पथप्रदर्शक हो,मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करे |

Meaning:
1.1 (I meditate on Sri Jagannatha) Sometimes Who fills the Groves (of Vrindavana) on the banks of river Kalindi (Yamuna) with the Music (of His Flute); The Music which waves and flows gently (like the waving blue waters of river Yamuna itself),
1.2: (There) like a Black Bee Who enjoys the blooming Lotuses (in the form) of the blooming Faces ( Joyful with Bliss ) of the Cowherd Women,
1.3: Whose Lotus Feet is always Worshipped by Ramaa (Devi Lakshmi), Shambhu (Shiva), Brahma, the Lord of the Devas (i.e. Indra Deva) and Sri Ganesha,
1.4: May that Jagannath Swami be my guide and bless me by His darshan in my vision.


भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिच्छं कटितटे
दुकूळं नेत्रान्ते सहचर_कटाख्यं विदधते ।
सदा श्रीमद्वृन्दावनवसतिलीलापरिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥२॥

अर्थ
आपके बाए हस्त में बांसुरी है और शीश पर मयूर पिच्छ तथा कमर में पीत वस्त्र बंधा हुआ है, आप अपने कटाक्ष नेत्रों से तिरछी निगाहो से अपने प्रेमी भक्तो को निहार कर आनंद प्रदान कर रहे है, और अपनी लीलाओ का जो की वृन्दावन में आपने की उनका स्मरण करवा रहे है और स्वयं भी लीलाओ का आनंद ले रहे है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथप्रदर्शक बनकर मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करे | 

Meaning:
2.1 (I meditate on Sri Jagannatha) Who has a Flute on His Left Hand and wears the Feather of a Peacock over His Head; And wraps over His Hips ...
2.2: ... fine silken Clothes; Who bestows Side-Glances to His Companions from the corner of His Eyes,
2.3: Who always reveals His Divine Leelas abiding in the forest of Vrindavana; the forest which is filled with Sri (Divine presence amidst the beauty of Nature),
2.4: May that Jagannath Swami be my guide and bless me by His darshan in my vision.

महाम्भोधेस्तीरे कनकरुचिरे नील शिखरे
वसनप्रासादान्तः सहजबलभद्रेण बलिना ।
सुभद्रामध्यस्थः सकल सुरसेवावसरदो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥३॥

अर्थ 
हे मधुसूदन ! विशाल सागर के किनारे, सूंदर नीलांचल पर्वत के शिखरों से घिरे अति रमणीय स्वर्णिम आभा वाले श्री पूरी धाम में आप अपने बलशाली भ्राता बलभद्र जी और आप दोनों के मध्य बहन सुभद्रा जी के साथ विध्यमान होकर सभी दिव्य आत्माओ, भक्तो और संतो को अपनी कृपा दृष्टि का रसपान करवा रहे है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथपर्दशक हो और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करे |

Meaning:
3.1 (I meditate on Sri Jagannatha) Who (resides) on the shore of the great Ocean (of Purushottama Kshetra), (where the Sands) shine like Gold, and on top of the Blue Hill of Nilachala (which seem to be touching the Blue Sky),
3.2: (There) Who reside within a Palace accompanied by His brother Balabhadra, (Balabhadra) who is endowed with great Strength, ...
3.3: ... and with (sister) Subhadra in the middle; Who (residing in Purushottama Kshetra) gives all the Suras (Devas) the opportunity to serve Him (and bring fulfillment in their lives),
3.4: May that Jagannath Swami be my guide and bless me by His darshan in my vision.

कृपापारावारो सजलजलदोश्रेणिरुचिरो
रमावाणीरामः स्फुरदमलपद्मेख्यण सुख।
सुरेन्द्रैराराध्यः श्रुतिगणशिखागीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥४॥

अर्थ
जगन्नाथ स्वामी दया और कृपा के अथाह सागर है, उनका रूप ऐसा है जैसे जलयुक्त काले बादलो की गहन श्रंखला हो, अर्थात अपनी कृपा की वृष्टि करने वाले मेघो के जैसे है, आप श्री लक्ष्मी और सरस्वती को देने वाले भण्डार है, अर्थात आप अपनी कृपा से लक्ष्मी और सरस्वती प्रदान करते है,आपका मुख चंद्र पूर्ण खिले हुए उस कमल पुष्प के समान है जिसमे कोई दाग नहीं है अर्थात पूर्ण आभायुक्त खिले हुए पुण्डरीक के जैसा आपका मुखकमल है, आप देवताओ और साधु संतो द्वारा पूजित है, और उपनिषद भी आपके गुणों का वर्णन करते है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथप्रदर्शक हो और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करे | 

Meaning:
4.1 (I meditate on Sri Jagannatha) Whose Compassion is boundless like an Ocean, and boundless is His Beauty like the Dark Water-Laden Rain-Clouds,
4.2: Who is a delight to both Ramaa (Devi Lakshmi) and Vani (Devi Saraswati), His delightful Charming Face reflecting the Beauty of a Spotlessly Pure Lotus blossoming forth,
4.3: Who is worshipped by the best of the Suras (Devas), and Whose transcendental Glories are sung by the best of the Scriptures,
4.4: May that Jagannath Swami be my guide and bless me by His darshan in my vision.

रथारूढो गच्छन्पथि मिलितभूदेवपटलैः
स्तुति प्रादुर्भावं प्रतिपदमुपाकर्ण्य सदयः ।
दयासिन्धुर्बन्धुः सकल जगतां सिन्धुसुतया
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥५॥

अर्थ
हे आनंदस्वरूप ! जब आप रथयात्रा के दौरान रथ में विराजमान होकर जनसाधारण के मध्य उपस्थित होते हे तो अनेको ब्राह्मणो,संतो,साधुओ और भक्तो द्वारा आपकी स्तुति वाचन, मंत्रो द्वारा स्तुति सुनकर प्रसन्नचित भगवान् अपने प्रेमियों को बहुत ही प्रेम से निहारते हे,अर्थात अपना प्रेम वर्षण करते है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी लक्ष्मी जी सहित जोकि सागर मंथन से उत्पन्न सागर पुत्री है मेरे पथप्रदर्शक बने और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करे | 

Meaning:
5.1 (I meditate on Sri Jagannatha) Who, when He is going mounted on His Ratha (Chariot) along the streets (during the Ratha Yatra festival), and the group of Brahmins ...
5.2: ... start singing His Stuti (Praises) (among the ocean of Devotees surrounding the Ratha); In every Step of this great Yatra, His Ears are open and His Compassionate Heart throbs with the Devotees,
5.3: Who is an Ocean of Compassion and Friend of the whole World; The whole World is like the Son of that Ocean (i.e. like His Son),
5.4: May that Jagannath Swami be my guide and bless me by His darshan in my vision.

परंब्रह्मापीडः कुवलयदलोत्फुल्लनयनो
निवासी नीलाद्रौ निहितचरणोऽनन्तशिरसि ।
रसानन्दो राधासरसवपुरालिङ्गनसुखो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥६॥

अर्थ
जगन्नाथ स्वामी आप ब्रह्मा के शीश के मुकुटमणि है, और आपके नेत्र कुमुदिनी की पूर्ण खिली हुयी पंखुड़ियों के समान आभा युक्त है, आप नीलांचल पर्वत पर रहने वाले है, आपके चरणकमल अनंत देव अर्थात शेषनाग जी के मस्तक पर विराजमान है, आप मधुर प्रेम रस से सराबोर हो रहे है जैसे ही आप श्रीराधा जी को आलिंगन करते है, जैसे कमल किसी सरोवर में आनंद पता है,ऐसे ही श्री जी का हृदय आपके आनंद को बढ़ाने वाला सरोवर है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथप्रदर्शक और शुभ दृष्टि प्रदान करने वाले हो | 

Meaning:
6.1 (I meditate on Sri Jagannatha) Supreme Brahman has condensed to create Whose Divine Form, in which the Eyes are like the Petals of a fully-blossomed Lotus,
6.2: Who resides in the Nilachala Parvata (in this World), but Whose Feet are placed on the Head of Ananta (Shesha Naga) (in the World of Transcendance),
6.3: Srimati Radharani Who derives Bliss only from Rasa becomes Happy in Whose Embrace; the Embrace of Whose Beautiful Form filled with Rasa (Sentiment of Divine Love),
6.4: May that Jagannath Swami be my guide and bless me by His darshan in my vision.

न वै प्रार्थ्यं राज्यं न च कनकमाणिक्यविभवं 
न याचेऽहं रम्यां निखिलजनकाम्यां वरवधूम् ।
सदा काले काले प्रमथपतिना गीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥७॥

अर्थ
हे मधुसूदन ! मैं न तो राज्य की कामना करता हूँ, ना ही स्वर्ण,आभूषण,कनक माणिक एवं वैभव की कामना कर रहा हूँ, न ही लक्ष्मी जी के समान सुन्दर पत्नी की अभिलाषा से प्रार्थना कर रहा हूँ, मैं तो केवल यही चाहता हूँ की प्रमथ पति (भगवान् शिव) हर काल में जिन के गुण का कीर्तन श्रवण करते है वही जगन्नाथ स्वामी मेरे पथप्रदर्शक बने एवं शुभ दृष्टि प्रदान करने वाले हो | 

Meaning:
7.1 (I meditate on Sri Jagannatha) O Lord, Neither do I seek Kingdom, Nor Wealth of precious Jewels and Gems (which do not give the bliss I find in God),
7.2: Also, I do not seek Charming Beautiful Woman sought after by all people (because even their charm fades compared to the attraction for God),
7.3: At every time, and at every (cherishable) moment, Whose Acts and Deeds are sung by the Lord of Pramathas (i.e. Shiva) (which forms a meditation on His Essence),
7.4: May that Jagannath Swami be my guide and bless me by His darshan in my vision.

हर त्वं संसारं द्रुततरमसारं सुरपते
हर त्वं पापानां विततिमपरां यादवपते ।
अहो दीनेऽनाथे निहितचरणो निश्चितमिदं
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥८॥

अर्थ
हे देवो के स्वामी, आप अपनी संसार की दुस्तर माया जोकि मुझे भौतिक सुख साधनो और स्वार्थ साधनो की आकांक्षा के लिए अपनी ओर घसीट रहे है, अर्थात अपनी ओर लालायित कर रहे है, उनसे मेरी रक्षा कीजिये, हे यदुपति ! आप मुझे मेरे पाप कर्मो के गहरे ओर विशाल सागर से पार कीजिये जिसका कोई किनारा नहीं नज़र आता है, आप दीं दुखियो के एकमात्र सहारा हो, जिस ने अपने आपको आपके चरण कमलो में समर्पित कर दिया हो, जो इस संसार में भटककर गिर पड़ा हो, जिसे इस संसार सागर में कोई ठिकाना न हो, उसे केवल आप ही अपना सकते है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करने वाले हो | 

Meaning:
8.1 (I meditate on Sri Jagannatha) O Lord, Please take away my attachment towards this Samsara (World) quickly, which is essentially worthless (compared to Your Devotion), O Lord of the Suras,
8.2: Please take away my Sins which have spread without any bounds (due to working in this Samsara wih the sense of attachment, and bereft of Your Love), O Lord of the Yadavas,
8.3: Aho, this is certain, that You give the refuge of Your Lotus Feet to the Miserable and Helpless (when they surrender to You); Therefore ...
8.4: May that Jagannath Swami be my guide and bless me by His darshan in my vision. 
  



स्त्रोत : 


3) प्रार्थना प्रीति - स्वाध्याय परिवार द्वारा प्रकाशित पुस्तक | 

Wednesday, July 16, 2014

सूरदास भजन : जनम सफल कर लीजे.....



रे मन कृष्ण नाम कही लीजे | (२)

गुरु के बचन अटल करी मानो  (२)

साधु समागम कीजे ||


रे मन कृष्ण नाम कही लीजे | (२)

पढ़िये गुनिये भगति भागवत 

और कहा कथि कीजे || (२) 

कृष्णनाम बिनु जनमु बादिही (२)

बिरथा काहे कीजे ||



रे मन कृष्ण नाम कही लीजे | (२) 
कृष्णनाम रस बह्यो जात है 

तृषावन्त है पीजे || (२)

सूरदास हरीसरन ताकिये (२)
जनम सफल कर लीजे

रे मन कृष्ण नाम कही लीजे | (२)

Wednesday, November 14, 2012

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥

अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः कथं भवेत्
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
भजति किं शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम्
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥