Om Namah Shivay
Friday, January 5, 2024
तुम उठो सिया सिंगार करो अब धनुष राम ने तोडा है - (भजन)
Wednesday, January 3, 2024
राम नाम के साबुन से जो – भजन के पद
राम नाम के साबुन से, जो मन का मेल छुड़ाएगा |
निर्मल मन के दर्पण में, वह राम का दर्शन पाएगा || (२)
नर शरीर अनमोल रे प्राणी, प्रभु कृपा से पाया है |
झूठे जग प्रपंच में पड़कर क्यों प्रभु को विसराया है || (२)
समय हाथ से निकल गया तो....... (२)
सिर धुन धुन पछताएगा |
निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा |
राम नाम के साबुन से जो मन का मेल छुड़ाएगा |
निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा ||
झूठ कपट निंदा को त्यागो, हर प्राणी से प्यार करो |
घर पर आए अतिथि कोई तो यथा शक्ति सत्कार करो || (२)
क्यों ?
पता नहीं किस रूप में आकर.......(२)
नारायण मिल जाएगा |
निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा |
राम नाम के साबुन से जो मन का मेल छुड़ाएगा |
निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा ||
साधन तेरा कच्चा है, जब तक प्रभु पर विश्वास नहीं |
मंजिल कर पाना है, क्या जब दीपक में परकाश नहीं || (२)
निश्चय है तो भवसागर से.......(२)
बेडा पार हो जाएगा |
निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा |
राम नाम के साबुन से जो मन का मेल छुड़ाएगा |
निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा ||
दौलत का अभिमान है झूठा, यह तो आनी जानी है |
राजा रंक अनेकों हुए, कितनों की सुनी कहानी है || (२)
राम नाम प्रिय महा मन्त्र ही.......(२)
साथ तुम्हारे जाएगा |
निर्मल मन के दर्पण में वह, राम का दर्शन पाएगा |
राम नाम के साबुन से जो.......(२)
मन का मेल छुड़ाएगा |
निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा |
राम नाम के साबुन से जो मन का मेल छुड़ाएगा |
निर्मल मन के दर्पण में वह राम का दर्शन पाएगा ||
Friday, March 3, 2023
नाम रामायण - अर्थ सहित हिंदी में
Wednesday, July 15, 2020
श्रीजगन्नाथाष्टकम् - जगन्नाथ अष्टकम अर्थ सहित हिंदी एवं अंग्रेजी में
2.3: Who always reveals His Divine Leelas abiding in the forest of Vrindavana; the forest which is filled with Sri (Divine presence amidst the beauty of Nature),
2.4: May that Jagannath Swami be my guide and bless me by His darshan in my vision.
3.3: ... and with (sister) Subhadra in the middle; Who (residing in Purushottama Kshetra) gives all the Suras (Devas) the opportunity to serve Him (and bring fulfillment in their lives),
3.4: May that Jagannath Swami be my guide and bless me by His darshan in my vision.
4.3: Who is worshipped by the best of the Suras (Devas), and Whose transcendental Glories are sung by the best of the Scriptures,
4.4: May that Jagannath Swami be my guide and bless me by His darshan in my vision.
5.3: Who is an Ocean of Compassion and Friend of the whole World; The whole World is like the Son of that Ocean (i.e. like His Son),
5.4: May that Jagannath Swami be my guide and bless me by His darshan in my vision.
6.3: Srimati Radharani Who derives Bliss only from Rasa becomes Happy in Whose Embrace; the Embrace of Whose Beautiful Form filled with Rasa (Sentiment of Divine Love),
6.4: May that Jagannath Swami be my guide and bless me by His darshan in my vision.
हे देवो के स्वामी, आप अपनी संसार की दुस्तर माया जोकि मुझे भौतिक सुख साधनो और स्वार्थ साधनो की आकांक्षा के लिए अपनी ओर घसीट रहे है, अर्थात अपनी ओर लालायित कर रहे है, उनसे मेरी रक्षा कीजिये, हे यदुपति ! आप मुझे मेरे पाप कर्मो के गहरे ओर विशाल सागर से पार कीजिये जिसका कोई किनारा नहीं नज़र आता है, आप दीं दुखियो के एकमात्र सहारा हो, जिस ने अपने आपको आपके चरण कमलो में समर्पित कर दिया हो, जो इस संसार में भटककर गिर पड़ा हो, जिसे इस संसार सागर में कोई ठिकाना न हो, उसे केवल आप ही अपना सकते है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करने वाले हो |
स्त्रोत :
Wednesday, July 16, 2014
सूरदास भजन : जनम सफल कर लीजे.....
साधु समागम कीजे ||
और कहा कथि कीजे || (२)
बिरथा काहे कीजे ||
कृष्णनाम रस बह्यो जात है
तृषावन्त है पीजे || (२)
रे मन कृष्ण नाम कही लीजे | (२)
Wednesday, November 14, 2012
महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते ।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥